संप्रत्यात्मक विवरण : Conceptual Statement
संप्रत्यात्मक विवरण : Conceptual Statement |
संप्रत्यात्मक विवरण हिंदी में : Conceptual Statement In Hindi
एक बच्चे में अनेक तरह के प्रत्यय का निर्माण होता है ,और यह उसके परिवेश पर निर्भर करता है । तो संप्रत्य निर्माण और उसकी क्या विशेषताएं हैं । इसके बारे में हम आपको आज बताएंगे।
Table of contents :
1 . प्रत्यय और संप्रत्यय विकास
2 . संवेदना और प्रत्यय निर्माण प्रक्रिया
3 . संप्रत्यय विशेषताएं
4 . प्रत्यय का स्तर
5 . शिक्षक द्वारा स्पष्टीकरण
6 . सारांश
आप सभी को पता है , की प्रत्यय एक आधार है । जो कि बच्चों में विकास के लिए जरूरी है । अब प्रत्यय का विकास एक बच्चे में कैसे होता है । उसके बारे में बात करते हैं।
1 . प्रत्यय और संप्रत्यय विकास
मनुष्य जन्म काल से लेकर वृद्धावस्था तक अनेक नए-नए प्रत्यय का निर्माता होता है। और हमेशा ही वह पुराने प्रत्यय का प्रयोग अपने जीवन काल में अपने अनुभव और बुद्धि के आधार पर अलग-अलग तरह से प्रयोग करता है ।
सबसे ज्यादा सहायता चिंतन प्रक्रिया में प्रत्यय की होती है , जो चिंता प्रक्रिया होती है, वह एक नियम के अनुसार और क्रम में होती है। हम ज्ञान का अर्जन अपने वातावरण से धीरे धीरे सीखते हैं । जब ज्ञानेंद्रियों से अलग-अलग अनुभव प्राप्त होता है , तो उसे एक में बांधने की प्रक्रिया प्रत्यय कहलाती है।
एक उत्तेजना का वर्ग जो की समान विशेषता को दर्शाता है वह ' प्रत्यय ' कहलाता है । यह विवेचना डी सीको के द्वारा की गई है ।
2 . संवेदना और प्रत्यय निर्माण प्रक्रिया
जब भी हम इंद्रियों के द्वारा कोई अनुभव करते हैं , तो उसे 'संवेदना' कहते हैं । व्यक्ति के दिमाग की चेतना संवेदना से आती है ।
जब भी हम बात करें प्रत्यय के निर्माण की तो वह संवेदना से आरंभ होता है , बच्चों के इंद्रीय ज्ञान धीरे-धीरे प्रत्यक्ष ज्ञान में बदल जाते हैं , और इसे हम ' प्रत्यक्षीकरण ' कहते हैं , क्योंकि बच्चा जो कुछ भी देखता है सुनता है उसके अर्थ को भली भाति समझने लगता है । संवेदना और प्रत्यक्षीकरण दोनों एक साथ घटना को दर्शाते हैं ।
अब हम यहां पर प्रत्यय के निर्माण की बात करते हैं -
सबसे पहले निर्माण की प्रक्रिया में ' निरीक्षण ' आता है , क्योंकि बच्चा जब किसी भी चीज को देखता है , तो उसके दिमाग में उसके प्रति एक चित्र अंकित हो जाता है , और यहीं से प्रत्यय का निर्माण होना शुरू होता है ।
उसके बाद वह उस चीज के प्रति उसके गुणों के बारे में जाने की कोशिश करता है । जिसके बाद उसमें तुलना करने की स्थिति उत्पन्न होती है ।
गुणों के विश्लेषण के बाद एकरूपता का ज्ञान उसे प्राप्त होता है , और उसके बाद वह सामान गुणों का संयोजन भी कर लेता है ।
3 . संप्रत्यय विशेषताएं
यदि हम प्रत्यय की विशेषता की बात करें तो जैसे जैसे बच्चों में की अवस्था में परिवर्तन आता है , वैसे वैसे प्रत्यय भी बदलता जाता है ।
1 . जब बच्चा सामान्य होता है , तो वह हर चीज को जैसे रोटी दाल इत्यादि को एक समान समझता है । लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा होता जाता है वह उन्हें अलग-अलग समझने लगता है।
2 . जब भी बच्चों को किसी वस्तु के बारे में समझना होता है तो उसको समझ नहीं आता । बाय नेट ने कहा है कि यदि किसी बच्चे से किसी पोशाक के बारे में पूछा जाता है , तो उसका कहना होता है यह पोशाक है । जबकि बड़े बच्चों द्वारा कहा जाता है , कि यह एक रात में पहनने वाली पोशाक है , तो दोनों के बीच प्रतिक्रिया अलग-अलग होती है ।
3 . हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए, कि कभी-कभी एक प्रत्यय को यदि किसी बच्चे को समझाना है , तो उसके लिए दूसरे प्रत्यय के बारे में जानकारी भी जरूरी है । उदाहरण के लिए यदि हम बात करें , त्रिभुज की तो हमें त्रिभुज के बारे में जानकारी देने से पहले भुजा एवं कोण दोनों का ही प्रत्यय स्पष्ट कर देना चाहिए ।
4 . प्रत्यय का स्तर
अब यहां पर व्याख्या करते हैं कि जब बच्चा बाल्यावस्था में हो तो प्रत्यय के कितने स्तर होते हैं।
1 . जीवन में प्रत्यय का ज्ञान
जब हम बच्चों के बारे में बात करते हैं , तो उनका जो ज्ञान होता है वह सीमित होता है । और उनके प्रत्यय को हम दोषपूर्ण मानते हैं , क्योंकि उन्हें वस्तुओं में भेद समझ में नहीं आते हैं । पियाजे द्वारा किसी वस्तु में चेतना को समझने के लिए कुछ व्याख्या की गई है - जैसे
1 . चाबी से चलने वाले खिलौने बच्चों के लिए सजीव होते हैं।
2 . सूर्य और चंद्रमा को जीवित मानते हैं ।
3 . बच्चों को ऐसा लगता है कि जो स्वयं गति करता है वह सजीव है।
4 . बच्चों को जानवर और मनुष्य जीवित लगते हैं ।
यहां पर तात्पर्य है , की बच्चों को जीवन और मृत्यु के बारे में विशेष अंतर पता नहीं होता । 3 - 5 वर्ष की आयु के बच्चे मृत्यु के बारे में यह समझते हैं , की वह अलग हो गया है । जब कि मृत्यु का मतलब है , कि इंसान हमेशा के लिए इस दुनिया से चला गया है।
2 . स्थान में प्रत्यय की व्याख्या
हर बच्चा अपने अनुभवों से सीखता है, और जब हम किसी चीज को पकड़ने के लिए कहते हैं, तो बच्चा आगे नहीं बढ़ता है । बच्चे के चलने और दौड़ने से उसे दूरी का मूल्यांकन पता चलता है । और दूरी हो या दिशा हो इसका ज्ञान में प्रशिक्षण की भूमिका महत्वपूर्ण है ।
3 . आकार संबंधित व्याख्या
यदि हमें छोटे और बड़े आकार में अंतर करना हो तो तीन से चार वर्ष के बच्चा इस अंतर को पहचान लेते हैं । लेकिन उसे बड़े बच्चे में जो कि 4 से 5 वर्ष की आयु का हो उसमें बीच के आकार को चुनने का भाव भी नजर आता है ।
4 . भार एवं संख्या का प्रत्यय
बच्चे अपने अनुभवों से अलग-अलग वस्तु के भार का ज्ञान अर्जित करता है , और वह धीरे-धीरे आकार और भार में अंतर भी करने लगता है । यदि हम संख्या की समझ की बात करें तो बच्चों को इसका अर्थ नहीं समझ में आता । जब उनकी आयु बढ़ती है ,और वह शिक्षित होते हैं तो उन्हें यह बात समझ में आती है , तो संख्या को समझना बच्चे के लिए तीन से चार वर्ष की उम्र में सिर्फ एक अनुकरण ही है।
5 . समय , धन के प्रत्यय का विकास
बच्चे के अंदर घड़ी की संख्या को समझना आसान है , लेकिन वह इतना विकसित नहीं होता । कि वह एक ऐतिहासिक घटना को समझ पाए । बच्चों को समय के अनुकरण के लिए प्रतीक और चिन्हा का उपयोग बेहतर साबित होगा । यदि हम धन की बात करें , तो बच्चों के लिए समझना कठिन है , सिक्के कई तरह अलग-अलग होते हैं और उनका मूल्य भी अलग-अलग होता है । 4 से 5 वर्ष के बच्चों में इसका विकास बहुत ही धीमी गति से होता है ।
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5 . शिक्षक द्वारा स्पष्टीकरण
शिक्षक को बच्चों के अंदर प्रत्यय को स्पष्ट करने की जरूरत है, क्योंकि बच्चा दूसरों के निर्देश पर का काम करता है । जैसे यदि किसी बच्चे से पूछा जाए कि तुम्हारी आंख कहां है तो वह बताता है तो जरूरत है इस चीज की, कि शिक्षक बच्चों में पहले से ही निर्मित प्रत्यय का सही मार्गदर्शन करें , सही और उचित मार्गदर्शन बच्चों में जरूरी है । यदि किसी प्रत्यय का ज्ञान असंभव है । तो उसके लिए संसाधन का उपयोग करना चाहिए । बच्चों को स्पष्ट रूप से बताना कि यदि कोई गाय है तो वह काली और भूरी या सफेद भी हो सकती है । मोटी , पतली भिन्न-भिन्न तरह की भी हो सकती है । बच्चों के अंदर किसी भी वस्तु या घटना को परिभाषित करने के लिए उनका ध्यान आकर्षित करना बहुत जरूरी है।
6 . सारांश
बच्चों में कई तरह के संप्रत्यय का विकास होता है । वह एक क्रम में वस्तुओं को धीरे-धीरे समझते हैं । जीवन ,जगह ,धन, समय यह सब की प्रमुखता है । बालक के लिए संप्रत्यय विकास एक बहुत अच्छा आधार है । और शिक्षक को बच्चों के अंदर किसी भी चीज की प्रमुखता कहां और कितनी है।उसकी क्या विशेषता है , इस पर ध्यान देना चाहिए । शिक्षक संप्रत्य विकास में बहुत सहायक होता है ।
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