रूसो का वृतांत वर्णन : Rousseau's narrative
रूसो का वृतांत वर्णन : Rousseau's narrative |
रूसो का वृतांत वर्णन
आज मैं आपको रूसो के बारे में बताऊंगी जो कि शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी के रूप में थे । एक ऐसे दार्शनिक जिन्होंने अपने वक्तव्य से शिक्षा को एक अलग ही पहचान दी है । हम रूढ़िवादिता को जानते हैं और इन आडंबरम के खिलाफ जिस तरह से रूसो ने समाज को बाहर निकालने की कोशिश की यह बहुत ही सराहनीय है।
Table of contents :
1 . रूसो का विचार और जीवन
2 . सामाजिक विचारधारा
3 . रूसो के अनुसार शिक्षा का रूप
4 . शिक्षा के लिए उद्देश्य
5 . पाठ्यक्रम अध्ययन
6 . अध्यापक की भूमिका
7 . सारांश
1 . रूसो का विचार और जीवन
रूसो ने बाल केंद्रित शिक्षा को अपने विचारों के आधार के अनुरूप एक दिशा दी वह हमेशा कहते थे , कि बच्चों को उनकी रूचि के अनुसार और उनकी आवश्यकता के अनुसार शिक्षा दी जानी चाहिए । बच्चों के अंदर प्राकृतिक गुण एक नई चेतना को जन्म देते हैं , और उन्हें प्रकृति के अनुरूप ही शिक्षा भी मिलनी चाहिए ।
रूसो के सिद्धांत को विद्यार्थी को समझना बहुत जरूरी है। यदि बात करें रूसो के जन्म की तो उनका जन्म हुआ 28 जून 1712 ईस्वी को जेनेवा में । 18 वीं सदी के दौर में निर्धनता बहुत थी और जो नैतिक आडंबर थे यह व्यवस्था रूसो को पसंद नहीं आई । रूसो के द्वारा लिखे गए उपन्यास द न्यू हेल्वायज , दी एमिल की वजह से यह एक महान दार्शनिक के रूप में जाने गए । 1778 में इनकी मृत्यु हुई और इन्होंने काफी कष्टों का सामना किया ।
दी एमिल में बालक को शिक्षा संबंधी विचार के बारे में बताया गया है। यहां पर चरित्र का बहुत ही गहरा प्रभाव देखने को मिलता है अपने काम के प्रति निष्ठा और माता-पिता का आत्मसम्मान का उल्लेख यहां पर स्पष्ट किया गया है ।
' दी न्यू हेल्वायज ' में गृह शिक्षा के संबंध में वर्णन किया गया है । इस रचना में उल्लेख किया गया है की एक बच्चे के प्रति माता का दायित्व क्या है और वह कैसी एक अध्यापक के रूप में कार्य करती हैं।
रूसो ने प्रकृति को ईश्वर की देन माना है । यदि सामाजिक कुरीतियों को अंधविश्वास को और राजनीति निरंकुशता को दूर करना है तो उसके लिए प्रकृति मददगार साबित होगी ।
2 . सामाजिक विचारधारा
रूसो का कहना था कि पहले मानव निश्चल था और अज्ञानी था , इसलिए जीवन भी बहुत सुखमय और सरल था और वह काफी संतुष्ट रहता था । लेकिन अब मानव की अभिलाषा बढ़ने की वजह से अपने अधिकार के लिए सभी जोर दे रहे हैं, और इसलिए मानव के अंदर लालच बढ़ गई है , और यही वजह है कि 18वीं शताब्दी में सामाजिक बुराइयों को लेकर विद्रोह हुआ था। इन सब को देखते हुए रूसो का कहना था कि सभ्यता एक बहुत बड़ी समस्या है और यह सभी बुराइयों की जड़ है।
यदि समाज को हमें बचाना है , तो प्राकृतिक सिद्धांत पर बल दिया जाना चाहिए । रूसो के राजनीतिक विचार की वजह से उन्हें ' लोकतंत्र का अग्रदूत ' भी कहा जाता है ।
रूसो के अनुसार मनुष्य जन्म से ही अच्छा सहानुभूति और दया दयालु होता है , लेकिन समाज में आने के बाद वह बुराई की तरफ बढ़ने लगता है इन गुणों को बचाकर हम एक अच्छे समाज की स्थापना कर सकते हैं इसके साथ ही यह सारे गुण प्रकृति की देन है ।
3 . रूसो के अनुसार शिक्षा का रूप
शिक्षा के लिए समाज का वातावरण , भौतिक वातावरण और बच्चे को जो प्रकृति की तरफ से शक्ति मिलती है इन तीनों पक्ष पर रुसो ने ध्यान दिया है । रूसो ने प्राकृतिक शिक्षा पर ध्यान देते हुए कहा की शिक्षा सार्वजनिक और घरेलू दोनों तरह की होनी चाहिए और घरेलू शिक्षा में मां को महत्वपूर्ण अध्यापिका कहा है । सार्वजनिक शिक्षा को मानने वाले यह पहले शिक्षा शास्त्री हैं । शिक्षा के क्षेत्र में बालक को स्वतंत्रता पूरी मिलनी चाहिए और यही स्वतंत्रता भविष्य का निर्माण करेगी ।
जब भी बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा की बात हो तब शिक्षक को उसका माध्यम नहीं बनना चाहिए क्योंकि ऐसे में बच्चे को असहजता महसूस होती है और वह स्वाभाविक शिक्षा को ग्रहण नहीं कर पाता और उसमें सद्गुण का विकास नहीं हो पाता इसलिए जरूरी यह है कि हमें प्रारंभिक शिक्षा के दौरान बच्चे को प्रकृति के ऊपर ही छोड़ देना चाहिए ।
4 . शिक्षा के लिए उद्देश्य
रूसो ने कहा सामाजिक संस्था एक तरह की मूर्खता है , और यह एक मानव के लिए विरोधाभास का काम करेगी । बच्चे ईश्वर के दिन होते हैं और जब तक वह प्रकृति के प्रभाव में रहता है तब तक वह सुख पवित्र और उसमें सद्गुण विद्यमान रहते हैं । इसलिए इन गुणों को सुरक्षित रखना हमारा कर्तव्य है , शिक्षा को जनसामान्य तक पहुंचाने पर जोर दिया गया। रूसो ऐसे बच्चे को जो कि सही स्वस्थ और मजबूत हो इन्हें मान्यता देते हैं और कहते हैं , कि स्वस्थ मन में ही उच्च चरित्र का विकास होता है । नैतिकता को बढ़ावा देते हुए रूसो का कहना है की प्राकृतिक परिणाम के अनुसार नैतिकता का विकास होना चाहिए ।
बच्चे का बचपन का अपना ही एक महत्वपूर्ण स्थान है , इसलिए बच्चों को बच्चा मानकर ही उससे व्यवहार करना चाहिए ना कि उस पर किसी तरह का दबाव डालना चाहिए। समाज में जितनी बुराइयां हैं बच्चों को उस से बचाना चाहिए । यह सारी वजह है , जिस वजह से बाल केंद्रित शिक्षा का आंदोलन आगे बढ़ा ।
रूसो ने निषेधात्मक शिक्षा पर बल देते हुए कहा कि अनुभव के आधार पर शिक्षा दी जानी चाहिए । बच्चे के खेलने कूदने से और अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने से विवेक का विकास होता है । कार्यशीलता , नैतिक , संगीत और धार्मिक शिक्षा पर रूसो ने बल दिया है ।
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5 . पाठ्यक्रम अध्ययन
रूसो के अनुसार 12 वर्ष तक की आयु में इंद्रियों और शारीरिक शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए । क्योंकि अच्छा स्वास्थ्य अच्छे मस्तिष्क का विकास करता है और एक शक्तिशाली और विवेक से भरे हुए मानव का विकास बहुत जरूरी है । और इसके साथ ही इंद्रिय शिक्षण से निर्णय लेने की क्षमता का अच्छा विकास संभव है ।
15 वर्ष की आयु के दौरान हस्तकला कि शिक्षा महत्वपूर्ण है , जो मस्तिष्क के विकास में भूमिका निभाएगी । और यह एक दार्शनिक दृष्टिकोण होता है । सामाजिक आवश्यकता को पूरा करने के लिए औद्योगिक कला पर बल दिया गया है ।
15 वर्ष की उम्र पार करने के बाद मानव को महसूस करना चाहिए और स्वयं निर्णय लेना चाहिए । और समाज की अच्छाई और बुराई को खुद से समझने की कोशिश करनी चाहिए । हम रूचि के अनुसार किशोर को नैतिकता का पाठ पढ़ा सकते हैं ।
रूसो का मानना है कि हमें किसी पर जोर नहीं देना चाहिए जिसके अंदर सीखने की इच्छा होगी वह खुद ही सीख लेगा वह अपने अनुभव के द्वारा सीख सकता है और करके सीखने जैसी पद्धति पुरुषों नहीं विकसित किया ।
6 . अध्यापक की भूमिका
अध्यापक को एक सहयोगी की तरह काम करना चाहिए ना की किसी मानव पर नियंत्रण करने की कोशिश करनी चाहिए। परिस्थितियों को देखते हुए रूसो ने मोंटसरी पद्धति का निर्माण किया ताकि बच्चे की अपनी रूचि के अनुसार उसे शिक्षा मिल सके । अध्यापक के द्वारा बिल्कुल भी कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए इससे बालक के अंदर एक सादगी का भी विकास होगा ।
7 . सारांश
हमने आज पढा कि रूसो द्वारा समाज को लेकर बच्चे का विकास कैसे करना है । उनकी शिक्षा कैसी होनी चाहिए इस पर बल दिया है । रूसो के द्वारा निषेधात्मक शिक्षा पर जोर दिया गया । बालक का सर्वांगीण विकास प्रकृति के अनुरूप ही होना चाहिए । जिससे कि उसमें विवेक का ज्ञान विकसित हो सके । रूसो के द्वारा शिक्षा प्रकृति वादी होनी चाहिए ।
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