मदन मोहन मालवीय का शिक्षा के क्षेत्र में विकास
मदन मोहन मालवीय का शिक्षा में योगदान
आज मैं आपको इस आर्टिकल में मदन मोहन मालवीय के शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के बारे में बताऊंगी । उन्नीसवीं सदी की बात है , मदन मोहन मालवीय सांस्कृतिक चुनौतियों का सामना करने वाले महापुरुष थे । मदन मोहन मालवीय के द्वारा ही काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी ।
लगातार जागरूकता और लोगों को शिक्षित करने में मदन मोहन मालवीय का नाम एक महान शिक्षाविद के रूप में लिया जाता है । अंग्रेजी राज्य के समय भारत की स्थिति क्या थी , और मालवीय जी का जीवन और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के बारे में मैं यहां व्याख्या करूंगी ।
Table of contents :
1 . 19 वीं सदी में भारत की स्थिति
2 . मदन मोहन मालवीय जी का जीवन सारांश
3 . जीवन में प्रमुखता
4 . शिक्षा में महामना के विचार
5 . शिक्षा एक प्रभावशाली शक्ति के रूप में
6 . शिक्षा के महत्वपूर्ण उद्देश्य
7 . विद्यालय एवं अन्य संस्थान की स्थापना
8 . सारांश
19वीं सदी और मदन मोहन मालवीय का विचार
1 . 19 वीं सदी में भारत की स्थिति - आप में से अधिकतर लोग यह जानते होंगे की 19वीं सदी में अंग्रेजों का राज्य था । भारत में कोई स्वतंत्रता नहीं थी । भारतीय लोग अंग्रेजों के साथ यात्रा नहीं कर सकते थे । मनोरंजन स्थल पर नहीं जा सकते थे । इसके साथ ही भारतीय उद्योग का भी विनाश हो चुका था । भारत की जो स्थिति थी वह बहुत दर्दनाक थी , जानबूझकर परंपरागत भारतीय शैली को विनाश किया गया ।
किसानों के लिए एक नई भूमि व्यवस्था लागू की गई थी , और उसके अंतर्गत जो अंग्रेजी सरकार को सबसे अधिक लगान देता । वही उस जमीन का हकदार होता । इस बात से हम अनभिज्ञ नहीं है , कि किसानों की अकाल मृत्यु हुई थी ।
शिक्षा के क्षेत्र में मानसिकता और बौद्धिकता के गुलाम लोग आगे नहीं बढ़ सकते थे । चार्ल्स ग्रांट और मैकाले ने भारतीयों को सामाजिक सांस्कृतिक और शैक्षिक स्तर पर गुलामी के लिए तैयार रखा था ।
2 . मदन मोहन मालवीय जी का जीवन सारांश
मदन मोहन 25 दिसंबर 1861 को प्रयाग में जन्मे । जब 1857 की क्रांति हुई थी तब एक निराशा उत्पन्न हुई थी , और ऐसे में मालवीय जी का जन्म ने एक आत्मविश्वास और स्वाभिमान को जन्म दिया । धर्म में गहरी रूचि के कारण मालवीय जी एक धर्म निष्ठा , समाजसेवी के रूप में जाने गये
संस्कृत , शारीरिक शिक्षा और धर्म में ज्ञान होने की वजह से इन्हें परंपरागत भारतीय ज्ञान का और दर्शन का अच्छा अभ्यास हो गया । उच्च विद्यालय में अध्यापक रहे मालवीय जी ने समाज सेवा के प्रति अपने जीवन को समर्पित किया ।
हिंदू समाज एवं साहित्य सभा संस्था की स्थापना इन्हीं की देन है । सन 1886 में राष्ट्रीय नेता के रूप में यह सामने आए कालाकांकर में उन्होंने हिंदुस्तान नामक समाचार पत्र का संपादन किया । 1891 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत करने के बाद 1909 और 1918 में यह कांग्रेस के अध्यक्ष बन गये और यह देश को नेतृत्व प्रदान करने वाले अग्रणी नेता के रूप में उभर कर सामने आये । भारत के शिक्षा स्तर को आगे बढ़ाने के लिए इन्होंने 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की और शिक्षा की नींव को मजबूत करने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया ।
3 . जीवन में प्रमुखता
मालवीय जी ने अपने जीवन में धर्म और ईश्वर भक्ति को प्रमुखता दी थी । लोगों की सहायता करना उन्हें सही मार्गदर्शन देना , जाति और भाषा के नाम पर जो दुर्व्यवहार हो रहा था । उसे रोक कर एक शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण करना।
उच्च कोटि की देशभक्ति ने महामना के कार्यक्षेत्र को व्यापक और विस्तृत कर दिया था । जब भी हम देश के गौरव शील होने की बात करते हैं तो वहां पर प्राचीन भारतीय संस्कृति का उत्थान , शिक्षा के क्षेत्र में विस्तार होना , सभी के कष्टों का निवारण , राष्ट्रीयता की भावना का विकास करना आदि सभी क्षेत्रों इन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया है ।
यह भी पढ़िए :
4 . शिक्षा में महामना के विचार
शिक्षा के क्षेत्र में अनुशासन की भावना पर इन्होंने विशेष ध्यान दिया । महामना के अनुसार उच्च चरित्र को प्रमुखता देना , मानवता , नैतिकता , निस्वार्थ सेवा के गुण का विकास करना अत्यंत आवश्यक था ।
महा मना के अनुसार यदि मानवता की भावना प्रेम और गहरी निष्ठा को बढ़ावा देना है , और सामाजिक सुधार पर विशेष ध्यान देना है , तो धर्म का अर्थ समझना बहुत ही जरूरी है ।
हर व्यक्ति के मन में निस्वार्थ सेवा भावना होनी चाहिए और यह मनुष्य का परम कर्तव्य भी है । सामाजिकता से भरा हुआ जीवन जीना और देश के गौरव को जिंदा रखने की भावना ने महा मना को एक महान युगपुरुष के रूप में उजागर किया ।
भविष्य के निर्माण के लिए उन्होंने स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांतों पर बल दिया उन्होंने व्यापक सिद्धांत को भी प्रतिपादित किया और कहा कि हम भविष्य का निर्माण स्वयं कर सकते हैं ।
बहुत ही कम लोगों को यह पता होगा कि उन्नीस सौ ईसवी में मालवीय जी के महत्वपूर्ण कदम की वजह से हिंदी को उचित स्थान मिला और कचहरी की भाषा को हिंदी में परिवर्तित कर दिया गया और इस तरह से विद्यार्थी को शिक्षा प्राप्त करने में सहजता महसूस होने लगी ।
हिंदी साहित्य सम्मेलन का पहला अधिवेशन 10 अक्टूबर 1910 ईस्वी को हुआ था । इतिहास, भूगोल, कला से संबंधित पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद किया गया और उन्हें उच्च स्तरीय पाठ्यक्रम में शामिल किया गया । हिंदी और संस्कृत भाषा पर ध्यान दिया गया ।
5 . शिक्षा एक प्रभावशाली शक्ति के रूप में
मालवीय जी का कहना था , कि यदि हमें देश की स्थिति में सुधार लाना है तो निरक्षरता को दूर करना होगा । मानव जीवन के विकास में शिक्षा एक अच्छा स्रोत है । यदि किसी विद्यार्थी में शारीरिक और बौद्धिक क्षमता का विकास हो जाए तो वह अपना जीवन निर्वाह अच्छे से कर सकता है । महा मना राष्ट्रप्रेम को समाज एवं राष्ट्र की सेवा में विकसित करना चाहते थे । वह इतने महान व्यक्ति थे की शिक्षा का वह निशुल्क प्रबंध करना चाहते थे और इससे समाज की कुरीतियां भी दूर हो जाती और निर्धन व्यक्ति को भी शिक्षा का अवसर मिलता । नारी शक्ति को भी वह बहुत प्रबल बनाना चाहते थे ।
6 . शिक्षा के महत्वपूर्ण उद्देश्य
शिक्षा को परम लक्ष्य के रूप में मानते हुए मालवीय जी ने संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास पर जोर दिया । ब्रह्मचर्य का पालन और व्यायाम यह आत्मबल का प्रतीक है , जोकि कठिनाइयों से लड़ने की क्षमता देता है । इसके साथ ही चरित्र का अच्छा निर्माण राष्ट्र की उन्नति के लिए अत्यंत आवश्यक है । हिंदुत्व की भावना का विकास और राष्ट्रीयता का आधार बनाने में इनका बहुत बड़ा योगदान है । महामना मालवीय जी शिक्षा के क्षेत्र में विकास करके भारत को एक अच्छा राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे ।
7 . विद्यालय एवं अन्य संस्थान की स्थापना
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के साथ-साथ महामना ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भी छात्रावास का निर्माण करवाया मालवीय हिंदू बोर्डिंग हाउस यह महा मना की ही देन है ।1 अक्टूबर 1915 बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी एक्ट पास होने के बाद इस विश्वविद्यालय में विज्ञान के साथ-साथ इतिहास संस्कृति हिंदू धर्म इत्यादि चंदन के अध्ययन को बढ़ावा दिया गया राजनीति क्षेत्र , भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास समाजवादी सिद्धांत इन सभी विषयों को पूरी निष्ठा के साथ अध्यापन पर जोर दिया गया । तकनीकी शिक्षा विद्युत इंजीनियरिंग रसायन विज्ञान शिल्प इत्यादि के शिक्षा के क्षेत्र में अध्ययन हेतु व्यवस्था की गई ।
महामना स्वतंत्र विचारों की वजह से शिक्षा का इतना विकास हो गया कि आज लड़कियों भी शिक्षा ले सकती है ।
8 . सारांश
यहां पर मैंने बताया कि कैसे मदन मोहन मालवीय जी ने शिक्षा के क्षेत्र में विकास के लिए अपना भरपूर योगदान दिया। भारतीय संस्कृति के उपासक मालवीय जी सदैव धर्म और संस्कृति को बढ़ावा देने में आगे रहे । प्राचीन भारतीय विज्ञान और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान पर भी उन्होंने ध्यान दिया । इनके द्वारा स्थापित शिक्षण संस्था जैसे काशी हिंदू विश्वविद्यालय , बनारस हिंदू बोर्डिंग हाउस और इलाहाबाद यह एक राष्ट्रीय धरोहर के रूप में विद्यमान हैं । जो आने वाली पीढ़ी को शिक्षा के क्षेत्र में और आगे लेकर जाएंगे । महा मना का शिक्षा पर दृढ़ संकल्प राष्ट्र की उन्नति के लिए धरोहर की तरह सिद्ध हुआ।
एक टिप्पणी भेजें