गुणवत्ता उन्नयन का सारांश : Summary of Quality upgrade 2021

 गुणवत्ता उन्नयन का सारांश  ( Summary of Quality upgrade 2021 )



गुणवत्ता उन्नयन का सारांश ( Summary of Quality upgrade 2021 )
गुणवत्ता उन्नयन का सारांश 



हाय दोस्तों ,आज इस आर्टिकल में मैं आपको गुणवत्ता उन्नयन अर्थात ' शिक्षा में गुणवत्ता ' के बारे में प्रमुख बातें बताऊंगी। जहां पर उसके अर्थ , समाज में शिक्षा के क्षेत्र में इसके गुण ,भूमिका एवं पूरे सारांश के बारे में मैंने व्याख्या की है । यदि आप REET ,TET जैसे एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं । तो यह आपके लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है ।

Table of Contents :

1 . गुणवत्ता 
2 . गुणवत्ता की परिभाषा
3 . शिक्षा में गुणवत्ता का अर्थ
5 . शिक्षा के क्षेत्र में पश्चिमी और भारतीय दृष्टिकोण
6 . विद्यालय गुणवत्ता
7 . विद्यालय गुणवत्ता सूचक
8 . गुणवत्ता प्रबंधन में प्रधानाचार्य की महत्ता 
9 . गुणवत्ता प्रबंधन का कार्य रूप
10 . गुणवत्ता उन्नयन सारांश

गुणवत्ता : ( Quality )

जब हम बात करते हैं , परंपरा की और आधुनिक युग की तो इन दोनों का मिश्रण वर्तमान शिक्षा को दर्शाता है । ' उद्योग ' एक ऐसा शब्द है , जहां पर हमेशा ही ' गुणवत्ता ' शब्द का उपयोग किया जाता है । ' गुणवत्ता ' एक ऐसा विचार है जिसके बारे में बहुत सारे मत प्रस्तुत किए गए हैं । शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता को लेकर काफी सारे नए विचार प्रस्तुत किए गए हैं ।

गुणवत्ता की परिभाषा ( Definition of Quality )

सन 1991 में ' ब्रिटिश मानक संस्थान ' ने एक परिभाषा दी थी जिसमें कहा गया था कि - 
' गुणवत्ता ' ऐसे लक्षण और विशेषताएं को दर्शाती हैं । जो किसी विशेष ' उत्पाद ' के बारे में उसमें विद्वमान गुणों को पूरा करने की क्षमता को बताता है ।
ओकलैंड 1989 के द्वारा ' गुणवत्ता ' को परिभाषित किया गया है । यहां पर बताया गया है कि किसी उत्पाद की एक सीमा होती है , और उस उत्पाद से किसी को जब तक सेवा प्राप्त होती है । तो वही उसकी ' गुणवत्ता ' कहलाती है ।

अगर हम सरल भाषा में बात करें ,  तो हम देखेंगे , कि जब भी किसी उत्पाद को तैयार किया जाता है । तो उसके लिए हर तरह के व्यक्तियों की जो राय होती है । वह अलग अलग होती है । जैसे किसी को कोई किताब दी गई और वह किताब उसने पढी उसको बहुत अच्छी लगी ठीक वैसे ही कोई दूसरा अगर व्यक्ति होगा । तो किताब को ऊपर से देखेगा और उसको वह भी अच्छा लगेगा तो हर तरह के व्यक्ति इस दुनिया में है । और सब की राय अलग-अलग है कुछ लोग ऐसे भी होते हैं कि वह उस किताब को खरीदे ही नहीं ।

इस तरह से  हम देखते हैं कि शिक्षा का क्षेत्र हो , सेवा का क्षेत्र हो या कुछ और हर तरह के क्षेत्र में अलग-अलग लोगों के अलग- अलग मतभेद सामने आते हैं ।

यदि हम किसी इंसान के बारे में बात करें तो कुछ लोग बहुत मुस्कुराते हैं खुश रहते हैं , अच्छा उनका आचरण होता है , अच्छा व्यवहार रखते हैं । लेकिन कार्य करने में सुस्त होने के बावजूद भी उन्हें लोगों के द्वारा पसंद किया जाता है लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं , जो ऐसे लोगों को पसंद करते हैं । जो कि समय की बचत बहुत अच्छे से कर सकते हैं । चाहे वह भले ही ना मुस्कुराते हो उनकी जिंदगी में कोई खुशी हो या ना हो । लेकिन यह मत भेद हमेशा हमें देखने को मिलता है । तो कहने का तात्पर्य है , कि कोई भी उत्पाद हो या सेवा क्षेत्र हो गुणवत्ता की जो पहचान है वह उपभोक्ता की पसंद पर ही निर्धारित है।

शिक्षा में गुणवत्ता का अर्थ ( Meaning of Quality in Education )

  
यदि हम शिक्षा के क्षेत्र की बात करते हैं । तो ' शिक्षा में गुणवत्ता ' का अर्थ विद्यार्थी की गुणवत्ता से लिया जाता है । क्योंकि शिक्षा विद्यार्थी को दी जाती है । शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता का महत्वपूर्ण योगदान है । यदि शिक्षा के क्षेत्र में किसी भी उत्पाद को तैयार किया जाता है । तो उसका गुणवत्तापूर्ण सही तरीके से होना बहुत जरूरी है , क्योंकि उसे नष्ट नहीं किया जा सकता है ।

शिक्षा के क्षेत्र में पश्चिमी और भारतीय दृष्टिकोण ( Western and Indian perspectives in the field of Education )

पश्चिमी दृष्टिकोण के अंतर्गत सीमेंट 1992 में शिक्षा की प्रक्रियाओं पर अधिक बल दिया गया है ।

- शिक्षा के क्षेत्र में नेतृत्व प्रणाली , आवश्यकताओं की पूर्ति , पुरस्कार ,मानव संसाधन विकास , मापन और व्यवस्थित समस्या समाधान पर अधिक बल दिया गया है ।

- शिक्षा में कई तरह की प्रक्रिया होती है । जैसे समान पाठ्यक्रम का होना , विषयों के लिए विशेष स्थान , समान योग्यता वाले अध्यापक इत्यादि की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाता है ।

- हम सभी को यह देखने को मिलता है , की कई बार एक ही विद्यालय को लेकर अपने बच्चों को प्रवेश दिलाने के लिए काफी होड़ लगी होती है ।  लेकिन कई सारे ऐसे अभिभावक होते हैं , जो कि उच्च विद्यालय की शिक्षा व्यवस्था से काफी निराश हो चुके होते हैं , और अपने बच्चों को वहां से निकालने की कोशिश करते हैं । इस बात से स्पष्ट होता है कि विद्यालय वातावरण और अभिभावक दोनों के दृष्टिकोण से अगर देखा जाए तो गुणवत्ता का अर्थ अलग-अलग देखने को मिलता है ।

- शिक्षा क्षेत्र के मामले में भारतीय दृष्टिकोण बहुत महत्वपूर्ण है । यदि हम बात करें , तो यहां पर मानव का स्वभाव शिक्षा से जुड़ा हुआ है । मनुष्य एक ऐसा माध्यम है , जो कि मानसिक रूप से , भौतिक रूप से , आध्यात्मिक रूप से जीवन को समझता है , और उसे जीता है ।  मनुष्य का शरीर मन , बुद्धि और आत्मा इंद्री शरीर का भाग होती हैं । हमारे भारत में शिक्षा के लिए शिक्षक शिक्षार्थी का संबंध जितना महत्वपूर्ण दर्शाया गया है। उतना ही मानव पर क्या प्रभाव पड़ता है , उस पर भी बल दिया गया है ।

जब भी हम विद्या के बारे में बात करते हैं । तो परा विद्या और अपरा विद्या दो तरह की विद्या की श्रेणी देखने को मिलती है ।

• परा विद्या - जो ज्ञान हमें अनुभव से मिलता है उसे हम ' परा विद्या ' कहते हैं ।
अपरा विद्या - और जो ज्ञान हमें इंद्रियों से मिलता है उसे ' अपरा विद्या ' कहते हैं ।

यह दोनों ही विद्या मानव के अंदर विवेक का विकास करती हैं और भारतीय समाज में ऐसा गुण को सार्थक माना जाता है ।

विद्यालय की गुणवत्ता - आजकल विद्यालय में गुणवत्ता नियंत्रण पर और उसके प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है । विद्यार्थियों की परीक्षा प्रणाली पर पठन सामग्री , विद्यालय सुविधाएं और उनका आकलन एवं मूल्यांकन प्रणाली पर विशेष बल दिया जा रहा है । इसके अतिरिक्त विद्यार्थियों के क्रियाकलापों की भी मॉनिटरिंग की जा रही है । विद्यार्थियों की परीक्षा के आधार पर उनकी योग्यता को परखा जाता है परखने के बाद उन्हें प्रवेश देना अनिवार्य समझा जाता है और एक निश्चित समय सारणी को भी विद्यालय में प्रमुखता दी जा रही है । तो विद्यालय की शिक्षा में गुणवत्ता प्रबंधन विकास का प्रयास जारी है ।

विद्यालय गुणवत्ता सूचक - जब ' गुणवत्ता सूचक ' की बात होती है । तो कई तरह के मत सामने आते हैं -

डेविस और एलिंसन - शिक्षक के संबंध में - विद्यालय में व्यवसायिक वातावरण कैसा है । जो शिक्षा विद्यार्थी को दी जा रही है , उसकी गुणवत्ता कैसी है ,अध्यापकों के लिए वातावरण की गुणवत्ता , विद्यालय में संप्रेषण और शिक्षकों को व्यवसायिक समर्थन कितना मिलता है , और उनकी सामान्य संतुष्टि कैसी है इस पर विशेष बल दिया गया है । विद्यार्थियों को सुलभ अवसर प्रदान करना , उनके व्यवहार संप्रेषण और सुविधाओं की गुणवत्ता , संप्रेषण इत्यादि विद्यालय की गुणवत्ता के सूचक के माध्यम हैं ।

यदि हम चाहते हैं कि विद्यालय की गुणवत्ता प्रबंधन अच्छी हो  तो इसके लिए कई सिद्धांतो की अनिवार्यता जरूरी है - 

विद्यार्थियों में उत्तरदायित्व की भावना का होना बहुत जरूरी है , विद्यार्थियों की अपेक्षाओं का पता लगाना और उनके प्रति संवेदनशील होना आवश्यक है । विद्यालय में जो भी सहकर्मी कार्य करते हैं , उनके प्रति बहुत अच्छी सोच होनी चाहिए , नए विचार के प्रति सहकर्मियों को जागृत करना चाहिए , समानता की भावना को प्रेरित करना चाहिए और व्यक्तिगत रूप से नए विचारों को अपनाया जा सके , इस पर ध्यान देना चाहिए । तभी जाकर एक सतत सुधार हो सकता है ।

गुणवत्ता प्रबंधन में प्रधानाचार्य की महत्ता 

प्रधानाचार्य में अपनी कार्य नीतियों को लेकर और योजनाओं को लेकर एक अच्छी गुणवत्ता होनी चाहिए और अच्छी गुणवत्ता को अपनाकर ही वह नेतृत्व कर सकता है , और अपनी भूमिका को अच्छे से निभा सकता है उसमें निम्न गुण होना आवश्यक है - एक अच्छा प्रधानाचार्य अपनी संस्था के लिए एक अच्छी गुणवत्ता की सोच उजागर करता है ।

- किसी क्षेत्र में कैसे सुधार प्रक्रिया को अपनाना है इस पर उसका ध्यान आवश्यक है ।
- जो स्टाफ के लोग होते हैं , उनको बढ़ावा देना अच्छी नीतियों और कार्य व्यवहार में अपना योगदान देना यह बहुत ही जरूरी है ।
- हमको अपने उत्तरदायित्व को निभाना और एक प्रभाव कारी टीम के रूप में कार्य करना और साथ ही साथ मूल्यांकन करने के लिए समुचित व्यवस्था का विकास होना बहुत ही आवश्यक है ।

गुणवत्ता प्रबंधन का कार्य रूप 

हमेशा यह देखा गया है , की बहुत सारे शिक्षण संस्थान जो होते हैं ।  उसके लिए कोई योजना नहीं होती और वह यूं ही चलते रहते हैं , और हमें किसी संस्थान के विकास के लिए एक योजना का निर्माण आवश्यक है ,और कई सारी कार्य नीतियां और वैकल्पिक तरीके सुचारू रूप से कार्यरत हैं ।
यदि हम चाहें तो विद्यालय में गुणवत्ता प्रबंधन के कार्य नीति को वैकल्पिक बनाने के बहुत सारे तरीके हैं । क्राफोर्ड सन् ( 1990 ) के अनुसार 8 चरण को महत्ता दी गई है ।

1 . विद्यार्थी की आवश्यकताओं की पूर्ति
2 . संस्था और उसकी महत्ता
3 . व्यवहार में विद्यार्थी के लक्षण के अनुसार उसमें परिवर्तन
4 . उद्देश्यों को निश्चित करना
5 . हर तरह के संसाधन सामग्री सुविधाओं की आवश्यकता की पूर्ति
6 . भौतिक और वित्तीय संसाधन  की योजना पर ध्यान केंद्रित होना
7 . विद्यार्थी में गुणवत्ता का पूर्ण आश्वासन होना
8 . मानवीय योजना को प्रोत्साहित करना

फ्रेजियर ने 6 तरह की कार्य नीति पर बल दिया - योजना बनाना , जारी रखना , जो भी बाधाएं हैं , उनको हटा देना , आकलन करना , तैयारी करना , और तैनात होना ।

नवरत्नम ने जागरूकता , प्रशिक्षण , गुणवत्ता जो कार्य करने की प्रक्रिया है , व्यापक मूल्यांकन करना और स्तत सुधार की आवश्यकता पर ध्यान जागरूक करने के लिए कहा है ।

गुणवत्ता उन्नयन सारांश 

गुणवत्ता उन्नयन अर्थात ' शिक्षा में गुणवत्ता ' के बारे में आज हमने जाना कि यह एक गतिशील विचार के रूप में है । और शिक्षा के लिए एक लक्ष्य की तरह है । चाहे भारतीय शिक्षा हो या आधुनिक शिक्षा यह दोनों के लिए ही सार्थक है । विद्यालयों में गुणवत्ता नियंत्रण और उनके प्रबंधन पर बहुत ध्यान दिया जाता है । योजनाओं चुनौतियों योजनाओं और नीतियों पर विशेष ध्यान देना गुणवत्ता उन्नयन के लिए आवश्यक है । शिक्षण संस्थान और संस्कृति का मूल्यांकन और संस्कृति में बदलाव एक विशेष दिशा में लेकर जाएगा ।

यदि हम किसी भी शैक्षिक संस्थान की मूल्यांकन , परियोजना इत्यादि स्थितियों पर ध्यान देते रहे तो बहुत जल्दी ही शिक्षा में
गुणवत्ता प्रबंधन का लक्ष्य अपने आप पूरा हो जाएगा ।

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